Sunday, July 28, 2013

मेरी जिँदगी की नाव मे सुराख हो गया


मेरी जिँदगी की नाव मे सुराख हो गया

हर ख्वाब जल के आँख मे ही राख हो गया

जब एक फूल प्यार का इसपे न खिल सका

ये जिस्म एक सूखी हुई साख हो गया

होना था जो हुआ ही नही फिर ये क्या हुआ

ये इश्क आज डाकिये का डाक हो गया

तेरे लिये जीना है साँस तेरे लिये लूँ

सारे बदन मे छेद बदन नाक हो गया

विषधर हैँ सारे लोग सिर्फ मै अकेला हूँ

इसलिये जुबाँ है फन दिलो मे साँप है

सावन की घटाओँ सा यूँ बरसा है सबका झूठ

सच सच नही रहा फकत मजाक हो गया

Thursday, June 6, 2013

मुझे जब भी वक्त मिलता है मैँ एक कविता लिखता हूँ॥

मुझे जब भी वक्त मिलता है
 मैँ एक कविता लिखता हूँ॥
कभी जिँदगी मे डूब के लिखता हूँ
 कभी जिँदगी से ऊब के लिखता हूँ
  कभी अपने बचपन पे लिखता हूँ
कभी उम्र पचपन पे लिखता हूँ
 कभी लडकपन पे तो
 कभी बडप्पन पे लिखता हूँ